Tuesday, September 19, 2006

01. तुम्हारी याद



न जाने कितने
जन्म-जन्मांतरों से
जुड़ी है तुम्हारी यादें ।

जब भी तुम्हारी याद
किसी खिलखिलाते हुए
बच्चे की तरह
आती है मेरे ज़ेहन पर
बाग-बाग हो जाता हूँ मैं
गुदगुदी-सी भर जाती है
पोर-पोर में
एक अप्रतिम आनंद की
अनुभूति होती है तब
किलकारी मारने को
करता है मन
उस बच्चे की तरह

तुम्हारी याद
किसी गुलाब के फूल की तरह
खुशबू बिखेरता हुआ
छा जाता है
मेरे रोम-रोम में
तब महक उठता है
मेरा भी सारा
तन-मन
उस गुलाब की तरह ।

तुम्हारी याद
बेसुध कर देती है –
मुझे
खो जाता हूँ
सपनों के संसार में
डूब जाता हूँ
उस पल में
जिस पल
हुआ था –
हम दोनों का
प्रथम आलिंगन
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