Tuesday, September 19, 2006

21. ओ माटी



ओ माटी ! बता दो ना
मैंने अपनी प्रियतमा को
सुलाया था
तुम्हारी गोदी में
बराबर ढाँककर
आया था
तुम्हारा आँचल
ताकि कोई दूसरा
देख न ले
तुम्हारे आँचल की
छत्रछाया में
आज भी सो रही होगी –
वह
निहारना चाहता हूँ
उसे
एक बार गले से लगाना चाहता हूँ
फिर से
बाँथ लेना चाहता हूँ
अपने बाहुपाश में
लेकिन तुम्हारी गोद
कहीँ भी
दिखाई नहीं दे रही है
कहाँ ढूढूँ
इतनी बड़ी धरती के बीच
ओ माटी
जवाब दो ना
ओ माटी
मैं जानता हूँ
तुम्हारा स्नेह आज भी
उसे मिल रहा होगा
अपनी गोदी से
उतारा नहीं होगा
तुमने
आखिर माँ हो ना
फिर भी जाने क्यों
देख लेने को
करता है मन
उसकी आवाज़ सुनने को
तरस रहे हैं
कान
उससे बात करने को
तरस रहे हैं
ओठ

ओ माटी
मेरा संदेशा
उस तक पहुँचोओगी
कृतार्थ हो जाऊँगा मैं
क्या मिल पाऊँगा
उससे दोबारा
ओ माटी
बता दो ना !
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