Tuesday, September 19, 2006
30.आत्म-निवेदन
मैं भी एक दिन
चला जाऊँगा दुनिया से
भूल जायेंगे लोग ।
आज तब मैंने
जो जीवन जिया
जो कुछ भी किया
मेरे उद्देश्य की
पूर्ति नहीं कर सका
मेरा आत्मा
इसे भी सह गई
मेरी झोली
खाली की खाली
रह गई ।
खाली झोली देखकर
मैंने कभी शिकायत नहीं की
अनैतिक भरने का
प्रयास भी नहीं किया
अट्टालिकाओं को देखकर
दुखी नहीं किया मन
ईर्ष्या से
जलाया नहीं अपना तन
लेकिन इस बात का
एहसास तो था
कि मैं जो बनना चाहता था
बन न सका
मैंने कभी
आकाश को छूने की
कोशिश नहीं की
न कभी सागर को
मापना चाहा
न सूरज को
भर लेना चाहा बाहों में
न चाँद को
उतार लेना चाहा
थाली में
मैंने तो केवल
सामान्य आदमी की तरह
जीना चाहा
कभी प्रशंसा की
परवाह नहीं की
हाँ अपने दोष
जरूर तुम्हें सुनाऊँगा ।
हाँ
इतना जरूर चाहा
कोई मुझको
गले से लगा ले
कोई तो हो
जो मुझे पास बिठा ले
प्रेम के कह दे मीठे शब्द
भर ले अपनी बाहों में
लगा ले मुझे छाती से
मैं अपने अश्रुकण से
धो लूँगा उसके चरण
लगा लूँगा माथे पर चरण-रज
सच मानों मैं तर जाऊँगा ।
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