Tuesday, September 19, 2006

44. अन्तिम इच्छा


एक छंद रख देना मेरी अरथी पर ।

बीत गया सावन, फिर भी प्यासा का प्यासा
कोसों तक मैं चला, हाथ में लगी निराशा,
जाने कितने गीत लिखे हैं साँझ-सवेरे
लेकिन सारे के सारे हैं आज अधूरे ।
जीवन अपना सफल मान लूँगा कविवर !
एक गीत रख देना मेरी अस्थी पर ।

सारा जीवन शब्दों की माला है बोयी
सारा जग सो जाता, नहीं लेखनी सोयी,
मेरा तो आराध्य यही मेरी थी पूजा
मेरी मंजिल यही, कहाँ ढूढूँ मैं दूजा ।

जीवन का अन्तिम पड़ाव है, साँसें अन्तिम ,
एक ग़ज़ल रख देना मेरी अरथी पर ।

मैंने सारा दर्द, स्वयं में आज संजोया
काट रहा हूँ वही आज, जिसको है बोया,
अस्ताचल में डूब रहा है सूरज देखो
मैंने भी तो सारा जीवन यूँ ही खोया

कौन क्षितिज के पार, आज आवाज दे रहा,

ज्योति, ज्योति में मिले, मिलन का क्षण आया लो,
एक शब्द रख देना मेरी अरथी पर ।
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