Tuesday, September 19, 2006
09. मन
सोच रहा
मेरा यह मन ।
क्षितिज के उस पार
कहीं
होता बसेरा
आ जाता जीवन में
स्वर्णित सबेरा
चाँद को ले आता मैं
अपने आँगन में
खुशियों को पा लेता मैं
कुछ ही क्षण में
विहँस जाये
सारा उपवन ।
मिल जाये
अनायास
मुझको राहों में
जी भर कर
भर लूँगा
अपनी बाहों में
अधरों से अधरों की
प्यास बुझा लूँगा
बातों ही बातों में
दर्द सुना दूँगा
रहूँ मैं निहारता
हर क्षण
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