Tuesday, September 19, 2006

अपनी बात


बीते हुये पलों की
उन यादों को
शब्दों से अभिमंत्रित कर
अपने सुधिजनों को
करता हूँ समर्पित ।



नहीं जानता
मेरा यह समर्पण
किसी की स्वीकार होगा
या नहीं
कोई लगा लेगा
छाती से
या छोड़ देगा
धरती पर
बेबस पड़े रहने के लिये
नहीं जानता ।


नहीं जानता
मेरी साधना
किसी के अन्तर्मन को
छू पायेगी
किसी के बुझे हुए
दिल को सहला पायेगी
नहीं जानता ।

मैं नहीं जानता कुछ भी
मेरी साधना अनुत्तरित है
समर्मण के बाद
शेष के बाद
शेष है तो केवल यादें !
उनकी यादें !
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