Tuesday, September 19, 2006
03.एक गीत तुम्हारे नाम
कभी-कभी सोचता हूँ
लिख दूँ एक गीत
तुम्हारे नाम का
छा जाये
वह गीत
सारी धरती
सारे आकाश
सारे लोक में ।
प्रतिध्वनित हो उठे
तुम्हारा नाम
दसों दिशाओं में ।
मंद-मंद
बहती बयार
तुम्हारे नाम का
गुण गाती जाये
नदी की बहती
कल-कल धारा
तुम्हारा ही गीत
सुनाती जाये
प्रतिध्वनित हो उठे
कण-कण में
वही गीत
इन वादियों में भी
गूँज उठे
मधुर संगीत
सूरज भी
तुम्हारे गीत को
अपनी किरणों से
बिखेर दे चहूँओर
बहती चली जाये
झरनों से
गीत की पंक्तियाँ
शेष बच जाएँ
तो मेरे पास
उस गीत की यादें
सिर्फ़ यादें ।
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