Tuesday, September 19, 2006
02.मदहोश चुम्बन
फिर उगी होंगी
पीपल की
मासूम कोपलें ।
पीपल के तने पर
जरुर होंगे
हम दोनों की
ऊँगलियों के निशान
जिन निशानों के बीच
छुपी हुई हैं
हमारी यादें
प्रथम मिलन की ।
वह पक्षी
जरूर बैठा होगा
उसी शाख़ पर
और
प्रतीक्षा कर रहा होगा
हम दोनों के
पुनः आगमन की ।
उस उन्मुक्त
हँसी को
सुनने के लिये
ज़रूर बेताब होगा
वह पीपल का पेड़
आज भी
तुम्हारी यादें की तरह
वह मदभरी हवा
जरूर दे रही होगी
एक मदहोश चुम्बन
उन पत्तों के
अधरों पर
हम दोनों की तरह ।
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