Tuesday, September 19, 2006

43.जीना दुश्वार हो गया

जिस दिन से तुम चले गये मेरे आँगन से,
उस दिन से जीना मेरा दुश्वार हो गया ।

दिन बीता तो लगता बीत गई हो सदियाँ
जाने कहाँ खो गई अब आँखों से निंदिया,
रातें अब खामोश, अश्रु से भीगी पलकें
भुल चुकी है जीवन की सारी रंगरलियाँ ।

जिस दिन से तुमने अपना संसार बसाया
उस दिन से ही मानो बेघराबार हो गया ।

सागर के तट पर रहकर प्यासा का प्यासा
एक अकेलेपन के कारण घोर निराशा,
सावन सूखा औ’ वसंत का अंत हो गया
जीवन में बाकी है केवल एक हताशा ।

जिस दिन से तुम छुड़ा गये हो बाहें अपनी ,
उस दिन से जीवन मेरा सुनसान हो गया ।

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