Tuesday, September 19, 2006

37. सूना शहर है

व्यस्त हैं सड़कें, हजारों लोग राहों पर खडे हैं,
एक बिन हमदर्द के, लगता है ये सूना शहर है ।


जिंदगी के मोड़ पर
यूँ लोग तो मिलते रहे हैं,
नील नभ में नित सितारे
फूल से खिलते रहे हैं।
एक भी मिलता है क्या, जिसको कि अपना कह सकोगे ,
भटकना मत और राही, शेष अब अंतिम प्रहर है।


आस्था विश्वास की
अब मिल गई नामो-निशानी ,
अति फरेबी हो गई है
हाय ! मूल्यों की कहानी ।
आज तो छल-छिद्र का, चहुँ ओर मायाजाल फैला,
जा रहा है राम अब, बनवास ही उसकी डगर है।


मत कहो हम आपके
दुख दर्द के भागी बनेंगे,
मत कहो तुम गर्व से
आदर्श अनुगामी बनेंगे ।
आइने में देख ली है, शक्ल हमने आपकी अब,
उठ रही फिर गिर रही, जैसे कि पानी की लहर है।
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