Tuesday, September 19, 2006

23.तेरा यह गाँव


अलसायी
आँखें हैं
कम्पित हैं पाँव
सूना अब
लगता है
तेरा यह गाँव ।

बागों
बागीचों में
छुप-छुप कर मिलना
पायल-सी
छम-छम कर
तेरा वह चलना
आ जाती
रोज-रोज
करके बहाने
सूना जब
पनघट हो
आती नहाने
याद मुझे आ रही
पीपल की छाँव ।

एक दिन
सज गई
तेरी जब डोली
जल गई
मेरी सब
अरमां की होली

याद मुझे
आ रहा
तेरा वह मुखड़ा
आज किसे-किसे कहूँ
अपना यह दुखड़ा
मेरा अब
रहा नहीं
दुनियाँ में ठाँव ।

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