Tuesday, September 19, 2006

31. हिले नहीं



चरण
हमने उनके
पखारे बहुत थे
मगर वे तो
अंगद के थे
कुछ हिले नहीं ।

बड़े ही
जतन से
उन्हें हमने
सींचा
वे ऐसे कमल थे
जरा भी
खिले नहीं ।

कई कोस
चलकर के
आये थे मिलने
मगर
एक पग भी
वे आगे
चले नहीं ।

बसाया था
हमने
उन्हें अपने
दिल में
मगर उनके
पाषाण
दिल थे
गले नहीं ।
00000

No comments: