Tuesday, September 19, 2006

22. दीप जल जाते



बस
तुम्हारी याद के
कुछ
दीप जल जाते ।

रोशनी में
नहाकर
कुछ अर्चना
कर लूँ
पुण्य सुधिया की
तनिक मैं
अंजुरी भर लूँ

आज से
बस तुम मेरे
आराध्य बन जाते ।

सजाई
मैंने सदा ही
स्नेह की
थाली
तुम्हीं से है
आज मेरी
पूर्ण दीवाली

आज बस
तुम टिमटिमाते
दीप बन जाते ।
आज मेरे सब्र का
सब
बाँध है टूटा
और बस
तेरे बिना
यह जगत है झूठा

आज सूरज से
जरा
पहले निकल आते।
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