Tuesday, September 19, 2006

14. सोचो


सोचो
कुछ तो सोचो
पर कब सोचोगे
किस आयु किस काल में ।

ढलता जा रहा सूरज
ढलती जा रही शाम
ढलता जा रहा यौवन
ढलती जा रही तमाम
जागो
कुछ तो जागो
पर कब जागोगे
किस आयु किस काल में ।

चुकती जा रही साँसें
चुकता जा रहा
समय
चुकती जा रही
लय
कर लो
कुछ कर लो
पर कब करोगे
किस आयु, किस हाल में ।
पड़ती जा रहीं
झुर्रियाँ
शिथिल हो रहा शरीर
जवाब दे रहीं
आँखें
नाकाम हुये सब तीर
भज लो
कुछ भज लो
पर कब भजोगे
पड़े हो जंजाल में ।
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