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18. यात्रा
कृषकाय होने लगी है
काया
शिथिल होने लगे हैं
सब अंग-प्रत्यंग
फिर भी
बढ़ते रहने की
जिजिविषा के कारण
मैं चलता जा रहा हूँ
पथ पर
अनवरत
लगातार
बिना यह स्वीकारे कि
साँसे जब
अवरुद्ध होने लगे
आँखों के आगे
छाने लगे अँधेरा
तब तो मुझे
समझ लेना चाहिये
कि मेरी यात्रा
अब पूर्ण हो चुकी है ।00000
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