मंद-मंद दीपक जल !
दूर जा रहा पथिक
सैंकड़ों कोस ठिकाना है
अनजानी है राह
उसे मंजिल तक जाना है
अँधियारा पीकर भी उसके
संग चलो हर पल !
मंद-मंद दीपक जल !
कजरारे नयनों में देखो
मोती ढुलकाये
हूक एक उठ जाती जब-जब
प्रियतम घर आये
एक किरण की आस सँजोकर
चलता जा अविरल !
मंद-मंद दीपक जल !
याद किसी की जब-जब
कविता बनकर बह जाती
पीड़ाओं की अश्रुधार
है सागर कहलाती
दो हृदयों के पुनर्मिलन की
लिख दे एक ग़ज़ल !
मंद-मंद दीपक जल !
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