Tuesday, September 19, 2006

29.तीरथधाम



अँगड़ाई लेती जब
आती है शाम
लगता है तब मेरा
घर तीरथधाम ।

गायों का संध्या को
घर लौट आना
कोठे में आकर के
उनका रम्भाना
चारा जब देकर के
करता विश्राम
लगता है तब मेरा
घर तीरथधाम ।

उनके मुखमडल पर
हाथ फेर लेता
उनको जब हाथों से
पानी मैं देता
उनको जब सहलाता
रोज सुबह-शाम
लगता है तब मेरा
घर तीरथधाम।

बछड़ों की आती जब
टोली की टोली
बन जाता मैं भी तब
उनका हमजोली
उछलते हुये क्षण
वे करते कुहराम
लगता है तब मेरा
घर तीरथधाम ।

गोबर उठाता हूँ
हाथों से जब मैं
पावन तब पाता हूँ
अपने को तब मैं
पाता हूँ अपने में
तब मैं ब्रज धाम
लगता है घर मेरा
तब तीरथधाम ।

दुध मुझे लगता है
अमृत हो जैसे
गोमूत्र की कहें क्या
औषधि हो ऐसे
इस सेवा को समझूँ
सेवा अविराम
बन जाये तब मेरा
घर तीरथधाम ।
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