तृप्ति का आधार, जब बनना न था तो,
अधर पर अंगार रख, क्यों चल दिये तुम ।
अधर पर अंगार रख, क्यों चल दिये तुम ।
कई सावन चल दिये
पर तृप्त कब मेरी पिपासा,
अब घटा की आस क्या
जब शेष है कोरी निराशा
सैकड़ों मधुमास बीते, मन रहा अतृप्त अब तक,
नयन में क्यों अश्रुसागर, आज भरकर चल दिये तुम ।
नेह के अनुबंध प्रेरित
पेड़ मैंने थे लगाये,
एक मेरे औ’ तुम्हारे
बीच में संबंध छाये ।
जो असिंचित रह गया हो, समझ लो निष्प्राण होगा,
क्या करे माली, व्यथा के बीज बोकर चल दिये तुम ।
रह गई अब सेज सूनी
कौन आलिंगन करेगा,
इस अगम संसार में है
कौन जो पीड़ा हरेगा ?
चाँदनी भी खो चुकी है, आज शीतलता न जाने,
जिंदगी बीरान करके, रूठ कर जब चल दिये तुम
00000
No comments:
Post a Comment