Tuesday, September 19, 2006

24.एक दीप हूँ मैं



जीवन-पथ आलोकित कर दे
एक दीप हूँ मैं ।

दूर सुदूर न जाने कोई
मुझ पुकार रहा
एक किरण की आशा लेकर
मुझे निहार रहा
सौ योजन की दूरी मुझको
तय कर जानी है
अंधकार पीती गलियों की
प्यास बुझानी है।

अन्तर्मन से मुझे पुकारो
तो समीप हूँ मैं ।

आँधी तूफ़ानों में मुझको
हर पल जलना है
निपट अँधेरी रातों में भी
मुझे निकलना है
सागर भी हूँ, पर्वत भी हूँ
और द्वीप हूँ मैं !

आँसू भी मोती बन जाये
वही सीप हूँ मैं ।

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