Tuesday, September 19, 2006

34. तुम न आये



जोहती मैं बाट
सदियों से तुम्हारी
तुम न आये ।

आज काया
चाँद-सी
कुम्हला रही है
अभ्युदय से पूर्व
ढलती जा रही है
सींच दो
कुछ नेह
यादों की घड़ी है
बीन लो
काँटे
सुकोमल पंखुड़ी है
आ गया आकाश
तारों को सजाये

आज तक मैंने
कहाँ कुछ भी
कहा है
सिर्फ तेरी
याद में
दुख ही सहा है
आज ही सहा है
आज कुछ
साँसें
यहाँ बस शेष हैं

जो बचा है
समझ लो
अवशेष है
आज मेरे प्राण –
तुममें ही समाये ।
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