Tuesday, September 19, 2006

42. प्यार कर लूँ


याद को प्रियतम तुम्हारी, आज मैं आँचल में भर लूँ,
जरा-सी छवि देख लूँ, जी भर हृदय से प्यार कर लूँ ।

अनबुझी-सी प्यास
जाने आज कब से है समायी,
दीप जल जाते हृदय के
प्रिय जब-जब साँझ आयी ।
अंजुरी मे भर लिया है, मैंने सागर प्यार का,
मिलन की घड़ियों को प्रियतम, गगन-सा विस्तार कर लूँ ।

सब गये पल की कहानी
तुम्हें प्रियतम कह रही,
सजल नेत्रों से निरन्तर
आज गंगा बह रही ।
टूटता अब जा रहा है ,बाँध मेरे सब्र का,
समा जाऊँ धरा में, या प्रलय का सत्कार कर लूँ ।

छा गया है तिमिर
दिन की रोशनी यह कह गई,
चुक गया सब तेल
अब तो सिर्फ बाती रह गई ।
और खोता जा रहा है, आज सूरज रोशनी,
आस में मैं जिऊँ, या फिर मौत अंगीकार कर लूँ ।
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